सकट चौथ बहुत शुभ दिन है। यह पूर्णिमा के चौथे दिन पड़ता है। यह दिन जनवरी-फरवरी के महीनों के बीच आता है। सकट चौथ को 'तिलकुत्ता चौथ' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सकट देवी के साथ भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है। महिलाएं अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए पूरे दिन व्रत रखती हैं।
सकट चौथ का इतिहास या व्रत कथा
प्राचीन काल में एक गांव में एक कुम्हार रहता था। वह सुंदर मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करता था और उन्हें भट्टी में पकाता भी था। एक दिन जब कुम्हार ने भट्टी में औजार डाले तो बर्तन नहीं पक पाए। कई बार प्रयास करने के बाद भी मिट्टी के बर्तन नहीं बन पाए। तब कुम्हार के पास समाधान के लिए राजा के पास जाने का एकमात्र विकल्प बचा। वह राजा के पास गया और उसे अपनी समस्या बताई। यह सब सुनने के बाद राजा ने राजपुरोहित (शाही पंडित) को बुलाने का आदेश दिया। राजा ने राजपुरोहित से इस विचित्र घटना का समाधान पूछा। राजपुरोहित ने सुझाव दिया कि जब भी बर्तन बनाने के लिए भट्टी बनाई जाए तो उसमें एक बच्चे की बलि दी जाए।
राजा ने सुझाव के पक्ष में आदेश पारित कर दिया। उन्होंने घोषणा की कि जब भी बर्तन बनाने के लिए भट्टी तैयार की जाए, तो प्रत्येक परिवार को एक-एक बच्चे की बलि देनी होगी। राजा के आदेश की अवहेलना कोई नहीं कर सकता था, इसलिए एक-एक करके सभी परिवार अपने एक-एक बच्चे की बलि देने लगे।
कुछ समय बाद सकट चौथ के दिन एक बूढ़ी महिला की बारी आई कि वह अपने बेटे को बलि चढ़ाए। उसके परिवार में उसका पालन-पोषण करने वाला सिर्फ़ एक बेटा था। लेकिन, उसके पास कोई विकल्प नहीं था और राजा के आदेश की अवहेलना कोई नहीं कर सकता था। वह परेशान थी और उसे डर था कि सकट चौथ के दिन ही उसे अपने बच्चे को खोना पड़ेगा और उसे मार दिया जाएगा।
बूढ़ी महिला सकट देवी की बहुत बड़ी भक्त थी, उसने अपने बेटे को प्रतीकात्मक सुरक्षा कवच के रूप में "दूब का बीड़ा" और सकट की सुपारी दी। उसने अपने बेटे से कहा कि वह भट्टी में सकट देवी की पूजा करे, वह निश्चित रूप से भट्टी की आग से उसकी रक्षा करेगी।
माता सकट की कृपा से उस बुढ़िया का बेटा सुरक्षित रहा और भट्ठा तैयार होकर आने वाले दिनों के लिए तैयार हो गया। उस दिन से ही शहर और अन्य स्थानों के लोग सकट चौथ का दिन पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाने लगे।
सकट चौथ कैसे करें?
- प्रातः स्नान करके भगवान गणेश का स्मरण करें और उनका मंत्र पढ़ें।
- तिल मिश्रित मिट्टी का एक छोटा सा पहाड़ बनाएं।
- अल्पना या आटा चौक के साथ पूजा स्थल तैयार करें।
- एक लकड़ी का पाट रखें, उस पर साफ और अप्रयुक्त कपड़ा बिछाएं, उसके एक ओर कलश रखें और दीपक जलाएं।
- मिट्टी से बने भगवान गणेश को सभी पूजा सामग्री (रोली, मोली, कुमकुम, फूल, फल, धूप, गुड़, तिल आदि) अर्पित करें।
- तिल, गुड़ और सूखे मेवे से बने पांच लड्डू चढ़ाएं।
- पूरे दिन उपवास रखें।
- चन्द्रोदय के समय चन्द्रमा को जल से अर्घ्य दें।
- फिर तिल, प्रसाद चढ़ाएं और चंद्रमा के सामने दीपक जलाएं।
- परिवार की खुशहाली के लिए चंद्रमा से प्रार्थना करें।
- अपने बड़ों और पति के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें।
- तिल से बनी मिठाई से व्रत खोलें।