सावन में शिव को प्रसन्न कैसे करें?
क्यों कहते हैं कि सावन का महीना शिव का महीना होता है? क्योंकि यही वो समय होता है जब हर कण में शिव बसे होते हैं। चारों तरफ हरियाली, बारिश की बूंदें, और मन में एक अलग-सी श्रद्धा—यही तो है सावन की खासियत। लेकिन बात सिर्फ मौसम की नहीं है... इस महीने का हर दिन शिव को समर्पित होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब विष निकला था, तो पूरे ब्रह्मांड को बचाने के लिए भगवान शिव ने वो हलाहल विष अपने कंठ में समा लिया था। और उसी का प्रभाव शांत करने के लिए देवताओं ने उन्हें जल चढ़ाया—और यहीं से शुरू हुई शिव अभिषेक की परंपरा, जो आज भी सावन में धूमधाम से निभाई जाती है।
इसलिए कहते हैं कि सावन सिर्फ एक महीना नहीं, शिव से जुड़ने का अवसर है। ये वो वक्त होता है जब मन खुद-ब-खुद भक्ति की ओर खिंचने लगता है, शिवालयों की घंटियां सुनाई देने लगती हैं और 'हर हर महादेव' की गूंज दिल को छू जाती है।
सावन में शिव पूजा का विशेष महत्व
सावन कोई आम महीना नहीं होता…ये वो समय होता है जब भक्ति के साथ-साथ प्रकृति भी शिवमयी हो जाती है। हरियाली, बारिश और ठंडी हवाओं के बीच जब कोई “हर हर महादेव” कहता है, तो रूह तक सिहर उठती है। मान्यता है कि इस महीने शिव सबसे ज़्यादा जाग्रत होते हैं।
जो प्रार्थना अन्य समय में धीरे-धीरे फल देती है, वो सावन में तुरंत असर दिखाने लगती है।
शिव की कृपा पाने के लिए ये महीना सबसे उत्तम है।
क्यों सावन में जल चढ़ाना शुभ माना जाता है?
पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ था, तब निकले विष ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। तभी भगवान शिव ने उस ज़हरीले हलाहल को अपने कंठ में रोक लिया, ताकि ब्रह्मांड बच सके।
उसी का ताप कम करने के लिए देवताओं और ऋषियों ने उन्हें गंगाजल और बेलपत्र अर्पित किए।
आज भी हम यही परंपरा निभाते हैं—हर बूंद जल के साथ हम अपना समर्पण और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
सावन में जल चढ़ाने से मन शांत होता है, और शिव कृपा जीवन में स्थिरता लाती है।
सोमवार व्रत रखने का महत्त्व और क्यों रखें ये व्रत?
सोमवार व्रत सिर्फ परंपरा नहीं है, ये शिव से आत्मा का सीधा जुड़ाव है।
हफ्ते का हर दिन किसी न किसी देवता को समर्पित है, लेकिन सोमवार भगवान शिव का दिन माना जाता है।
और सावन में तो ये महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यही वो महीना होता है जब शिव विशेष रूप से जाग्रत और कृपालु होते हैं।
पर क्यों रखें ये व्रत?
1. मन की शुद्धि और आत्मिक बल के लिए
भगवान शिव को "मन के देवता" कहा जाता है। जब हम व्रत रखते हैं, हम अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर नियंत्रण करना सीखते हैं।
ये संयम ही धीरे-धीरे हमारे मन को स्थिर और शांत करता है।
2. मनोकामना पूर्ति के लिए
चाहे विवाह में विलंब हो, संतान की इच्छा हो, पारिवारिक तनाव हो या करियर में रुकावट—सोमवार व्रत सच्चे मन से किया जाए तो शिवजी कृपा ज़रूर बरसाते हैं। कहते हैं, "भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन सच्चे मन से पूजा होनी चाहिए।"
3. शिव से आत्मिक जुड़ाव के लिए
सोमवार व्रत केवल शरीर को तपाने का तरीका नहीं है, यह आत्मा की यात्रा है। जब हम शिव का ध्यान करते हैं, शिव मंत्रों का जाप करते हैं, तब हम अपने अंदर की शक्ति और शांति को महसूस करते हैं।
4. कर्मों की शुद्धि और जीवन में स्थिरता के लिए
व्रत रखना सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि अपने जीवन को अनुशासन में ढालने का माध्यम है। शिव की पूजा से हमारे पिछले जन्मों के दोष, वर्तमान की उलझनें और आने वाले समय की बाधाएं भी धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं।
श्रावण मास में रुद्राभिषेक और मंत्र जाप का महत्व
श्रावण मास में रुद्राभिषेक करवाना या करना अत्यंत पुण्यदायक माना गया है। रुद्राभिषेक का अर्थ है—शिवलिंग का संपूर्ण विधि से अभिषेक करना, जिसमें जल, दूध, दही, शहद, घी आदि चढ़ाया जाता है और साथ में रुद्र मंत्रों का उच्चारण होता है।
- ॐ नमः शिवाय
- ॐ त्र्यंबकं यजामहे…
- रुद्राष्टाध्यायी और शिव चालीसा
ये मंत्र केवल शब्द नहीं होते, ये ऊर्जा के स्रोत हैं। सावन में इन मंत्रों का जाप करने से नकारात्मकता दूर होती है, मन स्थिर होता है, और कर्मों की शुद्धि होती है।
सावन में क्या ज़रूर करना चाहिए?
1. ताम्र पात्र (Copper Vessel) से जल अर्पण करें
बहुत लोग Steel या Plastic के लोटे से जल चढ़ा देते हैं। लेकिन तांबे का पात्र शिव को ऊर्जा देने वाला माना गया है। इससे जल का कंपन बढ़ता है और मनोकामना पूर्ति की संभावना भी।
2. सावन में “शिव सहस्त्रनाम” का पाठ करें (1008 नामों वाला पाठ)
बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘ॐ नमः शिवाय’ के अलावा, शिव सहस्त्रनाम का जप बेहद फलदायी होता है।
अगर प्रतिदिन 108 नाम भी पढ़े जाएं, तो 9 दिनों में सहस्त्रनाम पूरा हो सकता है।
3. शिव को चढ़ाई गई बेलपत्र पर अपना नाम या मनोकामना लिखें (गुप्त कामना सिद्धि)
एक साफ़ और तीन पत्तों वाला बेलपत्र लें, उस पर चंदन से अपनी मनोकामना या नाम लिखें, और शिवलिंग पर चढ़ाएं।
यह तंत्र में “संकल्प सिद्धि प्रयोग” माना जाता है।
4. एक समय शिव मंत्र सुनते हुए मौन रखें (Energy Reset Practice)
दिन में कम से कम 30 मिनट के लिए “ॐ नमः शिवाय” मंत्र को सुनते हुए मौन रहना, आपके विचारों और भावनाओं को Reset कर देता है।
शिव के मौन में अपार शक्ति है — इसलिए ये प्रयोग ग़ज़ब का असर करता है।
5. हर सोमवार को काले तिल का दान करें (कर्म दोष शमन प्रयोग)
ये कम लोगों को पता होता है — काले तिल का दान सावन में बहुत ज़्यादा असरकारक होता है।
यह पिछले जन्मों के पापों को शुद्ध करता है और राहु-शनि के दोष शांत करता है।
सावन के महीने में क्या नहीं करना चाहिए?
1. मांसाहार और शराब का सेवन पूरी तरह त्याग दें
ये महीने (जुलाई/अगस्त) आत्मिक शुद्धि का समय है, इसलिए तामसिक आहार और नशा शिव की कृपा से दूर कर सकता है।
2. प्याज़ और लहसुन ना खाएं
ये भी तामसिक प्रवृत्ति के खाद्य हैं और सावन में इनका सेवन वर्जित माना जाता है।
3. क्रोध और कटु वचन से बचें
शिव शांत हैं, लेकिन रुद्र भी हैं। इस महीने में संयम बहुत ज़रूरी होता है।
किसी का दिल दुखाना शिव की पूजा के असर को कम कर सकता है।
4. झूठ, छल-कपट और चोरी जैसे कर्मों से बचें
सावन सिर्फ बाहरी पूजा का नहीं, आंतरिक शुद्धि का महीना है। जितना आप भीतर से साफ रहेंगे, उतनी ही जल्दी शिव आपकी पुकार सुनेंगे।
5. शिवलिंग पर हल्दी या केतकी के फूल ना चढ़ाएं
ये दोनों चीज़ें शिव पूजन में निषिद्ध मानी जाती हैं।
रुद्राक्ष: सावन में शिवभक्ति नहीं, चेतना सुधारने का उपकरण
लोग अक्सर रुद्राक्ष को अंधश्रद्धा से जोड़ देते हैं।
पर सच्चाई यह है कि रुद्राक्ष सिर्फ धार्मिक आभूषण नहीं — बल्कि जैविक, विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा-संवाहक (bio-electric conductor) है।
अर्थात्: जैसे कुछ लोग चुंबकीय पट्टियाँ (magnetic bands) या तांबे के कड़े पहनते हैं ताकि उनकी शरीर की ऊर्जा और दर्द पर असर हो — उसी तरह रुद्राक्ष भी शरीर में बहने वाली ऊर्जा को संतुलित और नियंत्रित करता है।
अर्थात्: यह बीज अपनी सतह पर सूक्ष्म ध्रुवीयता (polarity) रखता है, जो शरीर के नाड़ी-तंत्र (nervous system) और ऊर्जा-चक्रों (chakras) पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
(रुद्राक्ष की सतह पर ऐसे बिंदु होते हैं जो चुंबकीय ताकत जैसे काम करते हैं, और ये हमारे शरीर की नसों, दिमाग और ध्यान केंद्रों को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करते हैं।)
आधुनिक शोध भी यह मानते हैं कि रुद्राक्ष पहनने से मन और शरीर की तरंगों (vibrations) में संतुलन आता है — जिससे तनाव कम होता है, फोकस बढ़ता है, और सोच में स्पष्टता आती है।
और सावन का महीना?
ये कालखण्ड शिव ऊर्जा से भरा होता है — जब वातावरण का कंपन (frequency) आत्म-साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है।
ऐसे में रुद्राक्ष न सिर्फ शिव से जुड़ने का माध्यम है — बल्कि वैज्ञानिक रूप से चेतना को स्थिर और संतुलित करने का एक सक्षम उपकरण भी है।
रुद्राक्ष से जुड़े मिथक और उनके पीछे का वैज्ञानिक/तार्किक सच
1. रुद्राक्ष सिर्फ धार्मिक चीज है, इसका कोई वास्तविक प्रभाव नहीं होता
तर्कसंगत सच:
रुद्राक्ष में पाए जाने वाले सूक्ष्म छिद्र (micro-pores) और उसकी सतह की बनावट, इसे इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रिसेप्टर (Electromagnetic Receptors) की तरह काम करने लायक बनाते हैं।
एक वैज्ञानिक अध्ययन (Nepal Health Research Council, 2012) के अनुसार, रुद्राक्ष पहनने से हृदय गति में स्थिरता, रक्तचाप में सुधार और मस्तिष्क की तरंगों (EEG) में सकारात्मक प्रभाव देखा गया।
2. इसे पहनने से पहले मांस-मदिरा त्यागना ज़रूरी है, वरना रुद्राक्ष काम नहीं करेगा
तर्कसंगत सच:
रुद्राक्ष एक जैविक बीज है — यह आपके शरीर की ऊर्जा को प्रभावित करता है, न कि आपके खान-पान पर आधारित होता है।
हाँ, संयम रखने से मन की अवस्था स्थिर होती है, जिससे रुद्राक्ष का प्रभाव और गहरा हो सकता है — लेकिन उसका कार्य केवल इसी पर निर्भर नहीं।
3. रुद्राक्ष सिर्फ साधु-संतों के लिए है, आम आदमी के जीवन में इसका क्या काम?
तर्कसंगत सच:
रुद्राक्ष ध्यान और मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है — जो आज की जीवनशैली में हर किसी को चाहिए।
यह तनाव, निर्णय लेने की क्षमता, और मानसिक थकावट को कम करता है।
इसलिए ये CEO, छात्र, डॉक्टर या गृहिणी — हर किसी के लिए प्रासंगिक है।
4. रुद्राक्ष पहनने से पहले भारी पूजन जरूरी है
तर्कसंगत सच:
कोई भी ऊर्जा उपकरण तब काम करता है जब वह Active किया जाए।
रुद्राक्ष को सक्रिय करने का तरीका है — ध्यान और मंत्र।
“ॐ नमः शिवाय” का उच्चारण ही पर्याप्त है उसे सक्रिय करने के लिए।
किसी बड़े अनुष्ठान की अनिवार्यता नहीं।
5. नकली और असली का फर्क करना मुश्किल है, इसलिए पहनने से डर लगता है
तर्कसंगत सच:
आज के समय में असली रुद्राक्ष की पहचान के लिए X-Ray, Surface Density Check, Water Test जैसी विधियाँ मौजूद हैं।
सही प्रमाणपत्र (Lab Certificate) वाले स्थान से लेने पर नकली का जोखिम नहीं रहता।
डर के कारण न पहनना ज्ञान का त्याग करना है।








