श्री लक्ष्मी चालीसा
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श्री लक्ष्मी चालीसा (अंग्रेजी)
II दोहा II
!! मातु लक्ष्मी करि कृपा करहु हृदया में वास,
मनोकामना सिद्ध करि पूर्वहु की आस !!
II सोरथा II
!! सिन्धु सुता में सुमिरो तोहि ग्यान बुद्धि विद्या दो मोहि,
तुम समान नहीं कोई उपकारी सब विधि पूर्ण आस हमारी !!
II चौपाई II
!! जय जय जगत जननी जगदम्बा l सब की तुम ही हो अवलम्बे,
तुम ही हो सब घट घट की वासी, बिनती यहीं हमारी खासी,
जगजननी जय सिंधु कुमारी l दिनन की तुम हो हितकारी,
बिनवो नित्य तुम्ही महारानी l कृपा करो जग जननी भवानी !!
!! केहि विधि स्तुति करो तहरि, सुधि लेजै अप्राध बिसारी,
कृपा दृष्टि चितबाहु मम ओरि l जग जननी बिनाति सुन्न मोरी,
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता l संकट हरो हमारे माता,
शिर सिन्धु जब विष्णु माथेयो l चौदह रत्न सिन्धु में पायो !!
!! चौड़ा रत्न में तुम सुखरासी, सेवा कियो प्रभु बानी दासी,
जब जब जनम जहाँ प्रभु लीन्हा, रूप बदल ताहे सेवा कीना,
स्वयम् विष्णु जब नर तनु धरा l लिनो अवदापुरी अवतारा,
तब तुम प्रगट जनकपुर महि ल सेवा कियो हृदे पुलकाहि !!
!! अपने तोहे अन्तर्यामी l विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी,
तुम सब प्रबल शक्ति नहीं आनी l कह लो महिमा कहो बखानी,
मन क्रम बचन करे सेवकाई l मन वंचित फल पावै,
तजि छल कपाट अउर चतुराई ल पूजे विविध भांति मनालै !!
!! और हाल में कहू बुझाई जो ये रास्ता करे मन लाई,
ताको कोई लागत ना मन ल इच्छित पावे फल सोई,
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणी विविध तप भव बंधन हारिणी,
जो चालीसा पड़े और पढावे l ध्यान लगा कर सुने सुनावे !!
!! ताको कोई ना रोग सतावे l पुत्र आदि धन सम्पति पावे,
पुत्र हीन अरु धन सम्पति हीना l अंध वधिर कोरहि अति दीना,
विप्र बुलाए के पाठ करावे l शंका दिल में कभी ना लावे,
पथ क्रवे दीन चालीसा l ता पर कृपा करे गोरिसा !!
!! सुख सम्पति बहुत सी पावे l कामी नन्हीं काहू की आवे,
बारह माष करें जो पूजा ल ता सम धनी और नहि दूजा,
प्रति दिन पथ करहिं मन मनि, तासम जगत कतहु कोई नाही,
बहुविधि का में करहु बारै l लेहु परीक्षा ध्यान लगाई !!
!! करि विश्वास करे व्रत नेमा l होइ सिद्ध उपजे अति प्रेमा,
जय जय जय लक्ष्मी भवानी l सब में वेपित हो तुम गुण खानी,
तुमरो तेज प्रवाल जग माहि l तुम सम कोउ देयलु काहू नाही,
मोह अनाथ की सुधि अब लीजे l संकट कोटि भगति मोहे दीजे !!
!! भूल चूक करु छमा हमरी ल दरसन दीजे दशा निहारी,
बिन दरसन बेयाकुल आदिकारी l तुम्हीं आषट दुख सहते भारी,
नहीं मोहि ज्ञान बुधि है तन में l सब जानत हो अपने मन में,
रूप चतुर्भुज करके धरन l कष्ट मोर अब करहु निवारण !!
II दोहा II
!! त्रेहि त्रेहि दुःख हरिणी l हरहु बेग सब त्रास,
जयति जयति जय लक्ष्मी l करहु शत्रु को नाश,
रामदास धरि ध्यान नित ल विनाए क्रत कर जोर,
मातु लक्ष्मी दास पर ल करहु देया की कोर !!
श्री लक्ष्मी चालीसा (हिन्दी)
दोहा
!! मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास,
मनोकामना सिद्ध करि, परुवहु मेरी आस !!
सोरठा
!! सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्धि विघा दो मोही,
तुम समान नहीं कोई उपकारी। सब विधि पूर्वहु आस हमारी !!
चौपाई
!! जय जय जगत जननी जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलंब,
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी,
जगजननी जय सिंधु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी,
विनवौं नित्य तुमहिं महात्म। कृपा करौ जग जननी भवानी !!
!! केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी,
कृपा दृष्टि चितव्वो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी,
ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता,
क्षीरसिंधु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिंधु में पायो !!
!! चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनी दासी,
जब जब जन्म प्रभु जहां लिया। रूप बदल तहं सेवा कीन्हा,
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अववपुरी अवतारा,
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं !!
!! पहिचानो तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन के स्वामी,
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी,
मन क्रम वचन करै सेवाई। मन चाहा फौजदारी फल पाई,
तजि छल कपट और चतुराई l पूजाहिं विविध कृतार्थ मनालाई !!
!! और हाल मैं कहूँ बुझाए l जो यह पाठ कराइ मन लाए,
ताको कोई कष्ट न मन ल चाहै पावै फल सोई,
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिनित्रिविध l तप भव बंधन हरिणी,
जो चालीसा पढै पढै। ध्यान लगाकर सुनावै !!
!! ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै,
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोधी अति दीना,
विप्र बोलै कै पाठ करावै। शंका हृदय में कभी न लावै,
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करें गौरीसा !!
!! सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै,
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा,
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नहीं,
बहुविधि क्या मैं करूँ बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाय !!
!! करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा,
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी,
तुमरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नहीं,
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट कटि भक्ति मोहि दीजै !!
!! भूल चूक करि क्षमा हमारी।दर्शन दजै दशा निहारी,
पन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी,
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में। सब जानत हो अपने मन में,
रूप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु चोट,
कुछ प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई !!
दोहा
!! त्राहि त्राहि दुख हरिणी, हरो वेगी सब त्रास,
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश,
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर,
मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर !!