श्री सरस्वती चालीसा
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सरस्वती चालीसा (अंग्रेजी)
दोहा
!! जनक जननी पदम राज, निज मस्तक पर धारी,
बंदौ मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारी,
पूर्ण जगत में वेप्त तव, महिमा अमित अनंतु,
दुष्टजानो के पाप को, मातु तुही अब हन्तु !!
!! जय श्री सकल बुद्धि बलरासी, जय सर्वागे अमर अविनासी,
जय जय जय वेणकर धारी, करती सदा सुहांस सावरी,
रूप चतुर्भुजधारी माता, सकल विश्व अन्दर विखाता,
जग में पाप बुढी जब होती, तब धर्म की फिरी ज्योति !!
!!तब ही मातु का निज अवतारी, पाप हीन करती महतारी,
बाल्मीकि जी हत्यारा ज्ञानी, तव प्रसाद जने संसार,
रामचरित जो रचे बानै, आदि कवि की पड़वी पै,
कालिदास जो भए विकट, तेरी कृपा दृष्टि से माता !!
!! तुलसी सूर आदि विद्वान, भये और जो ज्ञानी नाना,
तिन्हे ना और रहेउ अवलम्बा, केव कृपा आपकी अम्बा,
कृहु कृपा सोई मातु भवानी, दुःखित दीन निज दसहि जानि,
पुत्र क्रई अपराध बहुता, तेहि न धरि चित्त माता !!
!! राखु लाज जननी अब मेरी, विने करु बहु भांति भू तेरी,
मैं अनाथ तेरी अवलम्बा, कृपा करु जय जय जगदम्बा,
मधु कैटभ जो अति बलवाणा, बहुयुद्ध विष्णु ते ठाणा,
समर हजार पांच में घोड़ा, फिर भी मुख उनसे नहीं मोड़ा !!
!! मातु सहे भई तेहि काला, बुधि विपरीत करि खलहला,
तेहि मृत्यु भई खल केरी, पूर्वहु मातु मनोरथ मेरी
चंड मुंड जो विख्याता, चैन महु सहरु तेहि माता,
रक्तबीज से समरथ पापी, सुर-मुनि हृदे धरा सब कम्पी !!
!! कतेउ सर जिमि कदली खंबा, बार बार बिनवौ जगदंबा,
जग प्रसिद्ध जो शुम्भ निशुम्भ, छिन में बढे ताहि तू अम्बा,
भारत-मातु बुद्धि फेरेउ जाई, रामचन्द्र बनवास करई,
एहि विधि रावण वध तुम कीना, सुर नर मुनि सबको सुख दीना !!
!! को समरथ तव यश गुन गण, निगम अनादि अनंत बखाना,
विष्णु रुद्र जस कहि ना मारी, जिनकी हो तुम रक्षकरी,
रक्त दन्तिका और शताक्षी, नाम अपार है दानव भक्षी,
दुर्गम काज धरा पर कीना, दुर्गा नाम सकल जग लीना !!
!! दुर्ग आदि हरणी तू माता, कृपा कृहु जब जब सुखदाता,
नृप कोपित जो मरन चाही, कानन में घेरे मृग नाही,
सागर मध्य पोत के भंगे, अति तूफान नहिं कोउ संगे,
भूत प्रेत बाधा या दुःख में, हो दरिद्र अथवा संकट में !!
!! नाम जपे मंगल सब कोय, संशय इसमे करै न कोय,
पुत्रहिं जो आतुर भई, सबि चांदी पूजे एही,
करै पथ नित यह चालीसा, होय पुत्र सुन्दर गुन ईसा,
धुपदिक नैवेद्य चढावे, संकट रहित अवश्य हो जावि !!
!! भक्ति मातु की करि हमेशा, निकट न आवि ताहि कलेशा,
बंदी पथ करे शत बारा, बंदी पाश दूर हो सारा,
कृहु कृपा भवमुक्ति भवानी, मो कहँ दास सदा निज जानी !!
दोहा
!! माता सोराज कांति तव, अंधकार मम रूप,
दोबन ते रक्षा कृहु, परु न में भाव-कूप,
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु,
अधम राम सागर आदम को, आश्रय देतारु !!
श्री सरस्वती चालीसा (हिन्दी)
॥दोहा॥
!! जनक जननि पद्मराज, निज मस्तक पर धरि,
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि,
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु,
दुश्मनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु !!
!! जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी,
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी,
रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्तर्विख्याता,
जग में पाप बुद्धि जब होती। तब ही धर्म की फीकी ज्योति !!
!! तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी,
वाल्मीकिजी थे हत्यारे। तव प्रसाद जनै संसारा,
रामचरित जो रचे बनाए।आदि कवि की पदवी पाई,
कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता !!
!! तुलसी सूर आदि विद्वान्।भये और जो ज्ञानी नाना,
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा। केव कृपा तेरी अम्बा,
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुःखित दीन निज दासहि जानी,
पुत्र करहिं अपराध बहुता।तेहि न धरै चित माता !!
!! राखु लाज जननि अब मेरी। विनय करुं बख्श बहु तेरी,
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करु जय जय जगदंबा,
मधुकैटभ जो अति बलवना। बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना,
समर हज़ार पाँच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा !!
!! मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला,
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी,
चण्ड मुण्ड जो थे विख्याता।क्षण महु संहारे उन माता,
रक्त बीज से समरथ पापी।सुरमुनि हदय धरा सब काँपी !!
!! कटेउ सिर जिमि कदली खम्बा। बारबार बिन वं जगदम्बा,
जगप्रसिद्ध जो शुभंभनिशुंभा।क्षण में क्षीणे ताहि तू अम्बा,
भारतमातु बुद्धि फेरु जाई। रामचन्द्र बनवास करे,
अहिविधि रावण वध तू कीन्हा।सुरनरनुनि सबको सुख दीन्हा !!
!! को समर्थ तव यश गुण गान। निगम अनादि अनंत बखाना,
विष्णु रुद्र जस कहीं मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी,
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम विशाल है दानव भक्षी,
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा !!
!! दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता,
नृप कोपित को मारण चाहे।कानन में ढालू मृग नाहे,
सागर मध्य पोता के भंजे। अतितूफान नहिं कोऊ संगे,
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में !!
!! नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई,
पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबछंदी पूजाएँ एही भाई,
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा,
दानादिक नैवेद्य चढ़ावै। संकट रहित सर्व हो जावै!!
!! भक्ति मातु की करें सदैव निकट न आवै ताहि कलेशा,
बन्दा लिखो सत बारा। बन्दा पाश दूर हो सारा,
रामसागर खींची हेतु भवानी।कीजय कृपा दास निज जानी !!
दोहा
!! मातु सूर्य कांति तव, अन्धकार मम रूप।डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप,
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु। राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु !!