रामचरितमानस की अमृतवाणी:
जीवन को दिशा देने वाली प्रेरणादायक चौपाइयाँ
“मंगल भवन अमंगल हारी” चौपाई केवल एक भक्ति-पंक्ति नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा से भरी ऐसी वाणी है जो मन, जीवन और वातावरण को शुभता से भर देती है। यह चौपाई श्रीराम के उस स्वरूप का स्मरण कराती है जो कल्याण का स्रोत और सभी अशुभताओं का अंत है। इसका नियमित जाप मानसिक शांति, आत्मिक बल और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति प्रदान करता है। यही कारण है कि इसे पूजा-पाठ, संकट के समय, दिन की शुरुआत, या किसी भी नए कार्य के आरंभ से पहले पढ़ने की परंपरा है।
रामचरितमानस पाठ की विधि और महत्व
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इसका पाठ प्रातःकाल, संध्या, या किसी विशेष अनुष्ठान के समय शांत और श्रद्धामय मन से किया जाना चाहिए |
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उच्चारण स्पष्ट हो, भाव गहरा हो, और हर शब्द प्रभु के चरणों में समर्पित हो—यही इसकी विधि है।
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जब भक्त “मंगल भवन अमंगल हारी” का स्मरण करता है, तो यह पंक्ति केवल उच्चारित नहीं होती, वह उसकी आत्मा में उतरती है और अशांत चित्त को भी राममय बना देती है।
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इस चौपाई के साथ शुरू होने वाली रामचरितमानस की कई चौपाइयाँ जीवन में शुभता और संतुलन का संचार करती हैं, और इसीलिए यह संग्रह किसी भी साधक के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
1. मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी
भावार्थ:
- जो श्रीराम हैं, वो हर शुभता का स्रोत हैं और सारी अशुभता का नाश करते हैं। हे अयोध्या के राजमहल में खेलने वाले राम! कृपा करिए, हम पर दया कीजिए।
- यह चौपाई भगवान राम के मंगलमय स्वभाव और उनके कृपालु रूप को दर्शाती है। जब भी कोई दुख में होता है, तो यह चौपाई उसके दिल को सुकून देती है।
2. होइहि सोइ जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
भावार्थ:
- जो कुछ भी होता है, वही होता है जो राम ने पहले से तय कर रखा है। अब कोई चाहे जितनी भी दलीलें दे, उससे कुछ नहीं बदलता।
- ये चौपाई हमें सिखाती है कि जीवन में हर घटना राम की इच्छा से होती है, और बहस करने से बेहतर है उसे स्वीकार करना। यह आस्था और समर्पण का संदेश देती है।
3. धीरज, धरम, मित्र अरु नारी
आपद काल परखिए चारी
भावार्थ:
- धैर्य, धर्म, मित्र और पत्नी — इन चारों की असली परख मुश्किल समय में ही होती है।
- जब हालात मुश्किल होते हैं, तभी असली चेहरा सामने आता है। ये चौपाई आज के दौर में भी उतनी ही सच है जितनी तब थी — हर रिश्ते की कसौटी समय ही है।
4. जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू
सो तेहि मिलय न कछु सन्देहू
भावार्थ:
- जिसे जिस पर सच्चा प्रेम होता है, वो उसे जरूर ही मिलता है — इसमें कोई शक नहीं।
- यह चौपाई विश्वास दिलाती है कि सच्चे भाव और प्रेम कभी व्यर्थ नहीं जाते। अगर नीयत साफ है, तो मिलने में देर हो सकती है, पर निराशा नहीं होगी।
5. जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरति देखी तिन तैसी
भावार्थ:
- जिसकी जैसी भावना होती है, उसे भगवान भी वैसे ही दिखाई देते हैं।
- यह बहुत सुंदर और गूढ़ बात कहती है — ईश्वर का अनुभव हमारी सोच और दृष्टि पर निर्भर करता है। अगर भाव पवित्र है, तो प्रभु भी वैसे ही प्रकट होते हैं।
6. रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई
भावार्थ:
- रघुकुल (भगवान राम का वंश) की परंपरा सदा से यही रही है — जान भले ही चली जाए, लेकिन वचन कभी नहीं टूटना चाहिए।
- यह चौपाई श्रीराम की प्रतिज्ञा और मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप को दर्शाती है। आज भी जब किसी की बात पर अडिग रहने की बात होती है, तो यही चौपाई याद आती है।
7. हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता
भावार्थ:
- भगवान अनंत हैं, और उनकी कथाएं भी अनंत हैं। संतजन उन्हें अनेक रूपों में कहते-सुनते हैं।
- यह चौपाई दर्शाती है कि ईश्वर की महिमा का कोई अंत नहीं, और हर कोई उसे अपने-अपने तरीके से समझता और व्यक्त करता है।
8. राम सिया राम, सिया राम जय जय राम।
भावार्थ:
- श्रीराम और सीता जी की जय हो! उनकी महिमा को नमन!
- यह चौपाई राम नाम की महिमा को समर्पित है — एक मंत्र जो शांति, भक्ति और आनंद का स्रोत है।
निष्कर्ष:
रामचरितमानस की इन अमृतमयी चौपाइयों में न केवल भक्ति का रस है, बल्कि जीवन के लिए गहरे दर्शन और व्यावहारिक मार्गदर्शन भी छिपा है। ये पंक्तियाँ हमें संकट में धैर्य, संबंधों में सत्यता, और जीवन की अनिश्चितताओं में विश्वास की ओर प्रेरित करती हैं। चाहे वह “मंगल भवन अमंगल हारी” की कृपा याचना हो या “प्राण जाए पर वचन न जाई” की मर्यादा—हर चौपाई आत्मा को स्पर्श करती है और जीवन को संबल देती है। इन वचनों में वह शक्ति है जो अशांति में शांति, भ्रम में स्पष्टता, और निराशा में आशा का संचार कर सकती है।
इसलिए, इन प्रेरणादायक चौपाइयों का मनन केवल धार्मिक अभ्यास नहीं, बल्कि एक सार्थक और संतुलित जीवन की दिशा में उठाया गया कदम है।








